नेपाल की इस जगह में किया था सीता माता ने पाताल में प्रवेश

अगर हम आपको कहें कि वाल्मीकि आश्रम आज भी इस धरती पर मौजूद है धरती का वह हिस्सा जहां से सीता माता पाताल में समा गई थी वो जगह भी आज रामायण की ऐतिहासिकता का साक्ष्य दे रही है। तो क्या आप यकीन करोगे बिल्कुल करोगे । वैसे तो कई दशकों से पूरे भारत में कई जगह वाल्मीकि आश्रम के होने का दावा किया गया है लेकिन बिहार के वाल्मीकि नगर से 7 से 8 किलोमीटर दूर मौजूद है त्रेता युग के रामायण का सबूत ये वाल्मीकि आश्रम वाल्मीकि जी का ये आश्रम नेपाल के चितवन में मौजूद है और यही असली आश्रम इसीलिए है क्योकि रामायण में वर्णन की गई भौगोलिक परिस्थिति इस जगह से ज्यादा मेल खाती है।

ये आश्रम मिथिला और जनकपुर से काफी करीब है और सीतामढ़ी जहां माना जाता है कि सीता माता का धरती से जन्म हुआ था वो जगह भी चितवन से नजदीक है। ये वही वाल्मीकि आश्रम है जहां त्रेतायुग में सीता माता रहा करती थी और इसी जगह और धरती में भी समा गई थी। लेकिन इस बात का क्या सबूत है कि ये वही जगह है। दरअसल राम चरित मानस के लवकुश काण्ड में यह वर्णन मिलता है कि भगवान राम ने लक्ष्मण को सीता माता को जंगल छोड़ आने का आदेश दिया था तो उन्होंने कहा था कि जनकपुर से उत्तर की ओर कुछ योजन की दूरी पर सीता को छोड़ा जाए और यही वर्णन मेल खाता है उस जगह से जहां वाल्मीकि आश्रम मौजूद है। अगर इस बात से आपको यकीन न हुआ हो तो ये भी सुन लीजिए कि रामायण में सोन गंगा श्वेत गंगा और काली भद्र इन तीन नदियों के संगम के पास वाल्मीकि आश्रम के होने की बात की गई है

और आज भी उन तीन नदियों का संगम हमें इसी आश्रम के पास देखने को मिलता है। इसी आश्रम में ऐसी और कई सारी निशानियां हैं जो रामायण में घटित घटनाओं से जुड़ी है। यहां वाल्मीकि जी की समाधी से लेकर सीता माता से जुड़ी कई चीजें मतलब जब यहां सीता माता रहा करती थी तो उनके द्वारा इस्तेमाल की गई कई चीजें आज भी यह देखने को मिलती हैं। चितवन के घने जंगलों में लव कुश की जन्मभूमि भी मौजूद है। वाल्मीकि जी लव कुश को जिस जगह बैठकर सिखाया करते थे वो जगह भी मौजूद है। इन सारी जगहों से सिर्फ भारतीयों की नहीं बल्कि नेपाल वासियों की भी आस्था जुड़ी है। नेपाल के पुरातत्व विभाग ने इन सारी जगहों पर उत्खनन करके उन्हें जमीन से बाहर निकाला और इन जगहों को रामायण कालीन होने की मुहर लगाई थी।

रामायण के मुताबिक लव कुश ने अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को पकड़कर वाल्मीकि जी के आश्रम में बांधा था। इसी आश्रम से थोड़ी ही दूर का खम्बा भी मौजूद है जहां लव और कुश ने अश्वमेध घोड़ा बांधा था। यह खंबा यहां त्रेता युग से मौजूद है। श्रीराम जी को ऐसे चुनौती देने पर लव कुश पर प्रभु श्रीराम के बीच यु द्ध भी हुआ था। जब अयोध्या से सेना लव कुश पर ह मला करने आई थी तो उस से ना के कई सै निक लव कुश के वा र से मूर्छि त हो गए थे। कहा जाता है कि वाल्मीकि जी ने अपने आश्रम के कुंए से जल निकाल कर उन सै निकों के ऊपर छिड़का जिससे उनकी सेना में फिर से एक बार जान आ गई थी वह कुंआ भी इसी आश्रम में आज तक मौजूद है। इस आश्रम में प्रभु श्रीराम और सीता माता की भेंट हुई थी। उनकी

भेंट के बाद सीता माता ने अयोध्या जाने से मना कर दिया था और वो इसी जगह धरती में समा गई थी वो जगह भी आज यह देखने को मिलती है जहां से सीता माता ने पाताल में प्रवेश किया था। जो रामायण की सत्यता पर विश्वास नहीं करते हैं उन्हें ये लगता है कि त्रेतायुग में घटित घटना के सबूत आज हजारों सालों के बाद भी कैसे मौजूद हो सकते हैं लेकिन उन्हें कौन समझाए कि यही तो रामायण की खासियत है। रामायण में लिखित सारी घ टनाओं से जुड़े सबूत आज सही सलामत देखने को मिलते हैं और ये किसी चमत्कार से कम नहीं है और अगर फिर भी यकीन न हो रहा हो तो कमेंट में ज़रूर बता देना कि अगर इस आश्रम से जुड़ी मान्यता झूठ होती तो ये सारी निशानियां हूबहू वैसी क्यों हैं जैसा रामायण में उल्लेख है और इस आश्रम की भौगोलिक स्थिति भी बिल्कुल रामायण के वर्णन से मेल कैसे खाती है

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