
पर्यावरण संरक्षण को लेकर पूरा विश्व चिन्ता में है। भारत की तरफ दुनियाभर की उम्मीद भरी नजर है। प्रगति और विकास के साथ पर्यावरण से सामंजस्य को भारत ने इस प्रयोग को शताब्दियों तक व्यवहार में उतारा है। आज कई किस्म का कूड़ा-कचरा पर्यावरण के समक्ष एक नई चुनौती बनकर खड़ा है। इंडिया दूसरे देशों से कचरा खरीद रहा है। आख़िर क्यों यह सुनने में अटपटा जरूर लगे लेकिन यह बिलकुल सही है कि india हर साल दूसरे देशों से करीब 4 हजार 300 करोड़ किलो कचरा ख़रीदता है।
हमारे देश में कचरे की भला कोई कमी है जहा देखो वहां कचरा आसानी से देखने को मिल जाते हैं तो फिर भारत को दूसरे देशों से कचरा खरीदने की ज़रूरत किओ पड़ी । चलो मान लिया कि भारत कचरा इंपोर्ट करता है तो इतने कचरे का भारत आखिर करता क्या है ।

चलिए जान लेते हैं कि आखिर इंडिया क्यों दूसरे देशों से कचरा लाता है । भारत के इससे कचरा इम्पोर्ट करने की पॉलिसी को समझने से पहले जरा यहां की इन सड़कों को देखें। देखने में ये बिल्कुल एक आम सड़क की तरह ही है। लेकिन लेकिन ये सड़क प्लास्टिक वेस्ट से बनी है । एक किलोमीटर सड़क बनाने के लिए एक टन प्लास्टिक का यूज किया जाता है। तो किआ इंडिया दूसरे देशों से कचरा इसीलिए इम्पोर्ट करता है ताकि वो सड़क बना सके।
सोचिए सोचिए ऐसा है क्या। ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगा। इंडिया के गार्बेज इम्पोर्ट के पीछे एक दो नहीं बल्कि कई बड़े बड़े रीजन है। अगर इंडिया इतने बड़े लेवल पर कचरा इम्पोर्ट कर रहा है तो जरूर इसके पीछे बड़े कारण होंगे। इन कचरों को इंपोर्ट करना इंडिया के लिए बहुत ही प्रॉफिटेबल है। आप ये जान लें कि एक टन पेपर को रिसाइकल करने से 17 पेड़ ढ़ाई बैरर आयल 40 सौ किलो वोल्ट बिजली 4 क्यूबिक मीटर लैंड फिल और 31 हजार 780 लीटर पानी की बचत होती है।

वही एक इकनॉमिक सर्वे का ऐसा मानना है कि भारत ऑटोमोबाइल स्क्रैप से साल 2025 तक 10 मिलियन टन स्टील और 1.4 टन आयरन अयस्क इनके आयरन ओर जेनरेट करेगा। इससे भारत 16 से 17 पर्सेंट एनर्जी से कर पाएगा। हाल ही में भारत के इस्पात मंत्री और सीबीईसी ने अपने ट्वीट में प्लास्टिक कचरे से लोहे और इस्पात के निर्माण की बात भी कही थी
जिसे लेकर भारत जल्द ही एक नया रोडमैप तैयार करने में लगा हुआ है। देखिए कैसे लोग इस कचरे का इस्तेमाल क्या क्या बनाने में कर रहे हैं। क्योंकि इन्होंने कचरे को कचरा समझने की भूल नहीं की और कर डाला आविष्कार। इस लिस्ट में सबसे टॉप पर है ये जनाब जंगलों में प्रवेश और आयुष कुमार हैदराबाद के सतीश कुमार ने प्लास्टिक कचरे को रिसाइकलकर पेट्रोल
और ईंधन बनाने की टेक्नॉलजी इजाद कर ली है। इसमें 500 किलोग्राम रिसाइकल न होने वाली प्लास्टिक थैली से करीब चार सौ लीटर पेट्रोल बनाया जा सकता है।पर ये पेट्रोल नेचुरल पेट्रोल से 30 प्रतिशत सस्ता भी होगा। तो है न कमाल की सोच हम शायद आपको याद हो कि साल 2015 में इंडियन क्रिकेट टीम ने क्रिकेट लीग के दौरान प्लास्टिक वेस्ट से बनी टी शर्ट पहनी थी
जिसमें वो काफी कंफर्टेबल भी थे। कुछ इसी तरह राजस्थान के 17 साल के आदित्य बांगर ने एक कंपनी बनाई जिसमें पर डे 10 हजार टन प्लास्टिक कचरे को फैब्रिक में बदला जाता था। भीलवाड़ा जिले में ड्रायफ्रूट्स और नाम की इस कंपनी से काम किया जा रहा है। इतना ही नहीं भारत में कई ऐसे लोग हैं जो कचरे से भी रिसोर्सेस को ढूंढ लिया है।शॉकिंग लेकिन ये सच है।
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